Thursday, October 25, 2012

एक कोना, जीवन का।

किस कोने की बात करती हो ?

मैं तो बस अपनी बीते जीवन की कहानी बयान कर रहा था। और तुम हो के ढ़ूढ़ने लगी मेरे जीवन के उस कोने को? वँहा पहुंचना चाहती हो जो मेरे जीवन का अपना कोना है? क्या जानती हो, 
वँहा  तक पहुँचने में सरकना पड़ता है। बहुत ही झुक कर चलना पड़ता है। बरसो लग जाएँगे। थक जाओगी, और फिर कोशिश छोड़ दोगी।

और हाँ, फिर वो कोना तो मेरा है, मेरा अपना। और मैं तो अब वंहा खुद भी जाना नहीं चाहता।


फिर तुम क्यूँ जाना चाहती हो ?

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