Sunday, November 27, 2011

परिवार।

आज मनुष्य का जीवन
कितना निष्ठुर हो गया है,
स्वार्थसिद्धि के लिए,
अपनों का दुश्मन बन गया है.

एक बिस्तर पर सोने वाले,
एक कौर से खाने वाले,
बो रहे बबूल के कांटे
एक दुसरे के पथ में.

अकेलापन जिन्हें खाता था,
कभी कभी खाली घर में,
आज शान से कहते है,
की 'मेरा' परिवार बस्ता है इस घर में.

सदेव साथ रहने वाले,
एक साथ ही बड़ने वाले,
रक्ष्बंधन को भी बंधन,
मान रहे है अब दिल में.

- Archives, 12/8/1992

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