तुम जवाबो को गर आसान कर दो।
जानता हूँ की क्या दर्द छिपा रखा है तुमने सीने में,
हैरत है की तुम अब भी मुझ से अनजान बनते हो।
अपने आंसुओ से न डालो तुम अब और पर्दा,
की हर आंसू तुम्हारी ही दान्स्तान बयान करते है।
सरे बाज़ार मैयत तो कब की निकल चली है,
अब तुम फिर भी किस बात का इंतज़ार करते हो।
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