Saturday, December 31, 2011

बस यूँही ।

कैसे कह दू के तुम सब से हट कर हो,
तुम ही तो तो थे जो मेरे हमसफ़र बन कर मेरे साथ चले,
तुम ही तो थे जो मेरे ख्वाबो में थे,
तुम ही तो हर वक़्त मेरे ख्यालो और मेरी सांसो में थे,
और अब क्यूँ कहते हो के मैं खुद से यह कहू की तुम सब से हट कर हो ?
तुम तो मेरी रग रग में बसे हो,
मेरी जिस्म की जान बन कर.

Wednesday, December 28, 2011

अनामिका।

समझ नहीं पाता मैं तुमको,
या तुम्हारे विस्तार को,
सुबह से दिन भर तक,
तुम्हे जानने का प्रयास करता हूँ।

जब देखता हूँ इन्द्रधनुष को,
कुछ नए रंग  पाता हूँ। 
और इन रंगों की कलाकृति में,
स्वयं को अकेला खड़ा पता हूँ।

आकाश में तारो के जमघट में,
एक नया तारा देखता हूँ,
फिर धरा पर चुपचाप बैठकर,
विचारो का मंथन करता हूँ

सुनता हूँ अब जब भी तुमको,
क्यूँ शब्दों में नए अर्थ ढूँढता हूँ,
फिर इन्ही शब्दों, अर्थो में,
नया ताना बना बुनता हु।

समझ नहीं पता मैं तुमको,
या तुम्हारे विस्तार को,
सुबह से दिन भर तक,
तुम्हे जानने का प्रयास करता हूँ।