Friday, September 23, 2011

बादल।

आया जो बादल उमड़ घुमड़ कर,
एक टक मैं देखता रहा,

बरसा न एक बूंद भी,
और मैं आंसू रोता रहा.

Friday, September 2, 2011

तुम्हारे जवाब।

सवालों के सिलसिले यूँ ही चलते रहेंगे,
तुम जवाबो को गर आसान कर दो।

जानता हूँ की क्या दर्द छिपा रखा है तुमने सीने में,
हैरत है की तुम अब भी मुझ से अनजान बनते हो।

अपने आंसुओ से न डालो तुम अब और पर्दा,
की हर आंसू तुम्हारी ही दान्स्तान बयान करते है।

सरे बाज़ार मैयत तो कब की निकल चली है,
अब तुम फिर भी किस बात का इंतज़ार करते हो।